सूखे फूल, जिंदा मोहब्बत – दादी की अनसुनी प्रेमकहानी। Hindi kahani। Hindi story। Hindi Emotional love story।
दादी-दादा की अनोखी मोहब्बत की कहानी, जहाँ सूखे फूल भी रिश्तों की ताज़गी और सच्चे प्यार का संदेश देते हैं। पढ़ें दिल छू लेने वाली कहानी ।
प्यार की कहानियाँ अक्सर किताबों, फिल्मों और गानों में सुनाई देती हैं। लेकिन असली मोहब्बत वही है जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के छोटे-छोटे लम्हों में छिपी होती है। ऐसी ही एक अनोखी, सच्ची और दिल को छू लेने वाली प्रेमकहानी है मेरी दादी और दादा की, जिसे सुनकर हर कोई रिश्तों का असली मतलब समझ सकता है
एक शाम मैं कॉलेज से लौटा और दादी के पास बरामदे में बैठ गया। मैंने मज़ाक-मज़ाक में दादी से कहा की
“दादी, आप हमेशा दूसरों की कहानियाँ सुनाती हो, कभी अपनी मोहब्बत की भी सुनाओ।”
दादी पहले तो शरमा गईं, फिर मुस्कुरा उठीं। उनकी आँखों में बीते वक्त की चमक झलक रही थी। उन्होंने गहरी साँस ली और अपनी प्रेमकहानी सुनानी शुरु की
“बेटा, मैं पढ़ी-लिखी लड़की थी। मुझे किताबों से बहुत लगाव था। मैं चाहती थी कि आगे पढ़ाई करूँ, कुछ बड़ा कर दिखाऊँ। मगर उस समय समाज और परिवार में लड़कियों की इच्छा उतनी मायने नहीं रखती थी।
तेरे दादा से मेरी शादी घरवालों के दबाव में हुई। मैं नाराज़ थी, चुप रहती थी। दिल में कसक थी कि सपने अधूरे रह गए।"
शादी के बाद दादी ने खुद को बहुत अलग-थलग महसूस किया।
“तेरे दादा चुपचाप रहते थे। मैं उनसे ज्यादा बात नहीं करती थी। मन ही मन सोचती थी कि मेरा जीवन बस ऐसे ही गुज़र जाएगा। लेकिन बेटा, सच्चा प्यार अपनी राह खुद बना लेता है।”
फिर दादी की आवाज़ में मिठास घुल गई..
“शादी के कुछ दिन बाद एक सुबह तेरे दादा मेरे लिए बगीचे से एक छोटा-सा फूल तोड़ लाए। बिना कुछ कहे, बस मेरी हथेली पर रख दिया।
मैं चौंक गई। कुछ कहा नहीं, बस उस फूल को किताब में दबा लिया।
अगले दिन फिर वही हुआ। और उसके अगले दिन भी।”
“यह सिलसिला एक-दो दिन नहीं, पूरे दो साल तक चला।
हर सुबह वो चुपचाप मेरे लिए एक फूल लाते। गुलाब, चमेली, गेंदा… जो भी उनके हाथ लग जाए।
मैं भी बिना बोले उन फूलों को अपनी किताब में दबा देती। धीरे-धीरे मेरी नाराज़गी पिघल गई। मैंने महसूस किया कि बिना बड़े शब्दों और दिखावे के भी मोहब्बत जताई जा सकती है।”
दादी ने रुककर मेरी तरफ देखा और कहा—
“बेटा, वो फूल मेरी किताबों में दबकर सूख गए, लेकिन उनका असर कभी नहीं सूखा।
मैं समझ गई कि प्यार का मतलब सिर्फ बड़े वादे नहीं, बल्कि रोज़ का छोटा-सा एहसास भी है। तेरे दादा ने मुझे ताजमहल नहीं दिया, लेकिन उन फूलों ने मेरे दिल का ताला खोल दिया।” दादी ज़ोर से हसीं।
दादी अलमारी से एक पुरानी किताब ले आईं। किताब के पन्नों में दर्जनों सूखे फूल रखे थे—कुछ भूरे पड़ चुके थे, कुछ अब भी हल्का रंग लिए थे।
उन्होंने किताब मेरे हाथ में रख दी और बोलीं—
“देख बेटा, ये फूल सूख चुके हैं, पर इनसे जुड़ा प्यार अब भी जिंदा है। यही असली रिश्ता होता है।”
मैं चुपचाप किताब के पन्ने पलटता रहा। उन सूखे फूलों में मुझे दादा का प्यार, दादी की मुस्कान और रिश्तों की गहराई नजर आई।
मेरी आँखें भर आईं। मैंने दादी का हाथ पकड़ते हुए कहा—
“दादी, अब समझ आया कि असली मोहब्बत कैसी होती है।”
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प्यार का मतलब हमेशा बड़े तोहफ़े या महंगे इज़हार नहीं होता।फूल सूख सकते हैं, लेकिन उनसे जुड़ी यादें और मोहब्बत हमेशा ताज़ा रहती है।
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