माँ का संन्दुक।। 20 साल का रहस्य।। Emotional story।।Heart touching story।।Suspens story in hindi।।

20 साल से 3 बेटे और उनकी पत्नियां माँ की सेवा कर रहें है संन्दुक के लिये। एक दिन जब माँ ने संन्दुक खोला तो सबकी आँखे फटी रह गई।। Emotional story।।




माँ का संन्दुक।। 20 साल का रहस्य।। Emotional story।।Heart touching story।।Suspens story in hindi।।


सावित्री देवी 75 साल की हो गई है।सावित्र देवी  के तीन पुत्र हैं। सावित्री जी के पति का देहांत तब हो गया जब वो 55 वर्ष की थी। सावित्री जी एक छोटे से पुराने घर में रहती है। जिसको उनके पति ने ही बनवाया था।


तीनो बेटे उनके साथ तो नहीं रहते लेकिन ऐसा एक भी दिन नहीं रहता जब वो उनसे मिलने या उनकी सेवा करने नहीं आते हो।


तीनो की पत्नियां भी दिन में आती है। याने यूँ ही समझ लीजिये की उनका घर कभी खाली नहीं रहता कोई ना कोई वहाँ उनकी सेवा चाकरी में लगा ही रहता है।


 3 बेटों ने अलग अलग अपना घर बना रखा है। सब की अपनी पर्सनल लाइफ भी है और परेशानियाँ भी है. आदमी चाहे कितना भी बड़ा बन जाये उनकी परेशानी कम नहीं होती। अमीर से अमीर इंसान को भी यह परेशानी होती है की वो अमीर कैसे बना रहें।



तीनो बेटों ने कई बार जिद भी की माँ उनके साथ जाकर वहाँ रहें। लेकिन उन्होंने कहाँ की वो यही रहेगी। उसी घर में उन्हें ओर कहीं चैन नहीं आता है।


आप ऐसा बिलकुल मत सोचिये की यह 3 तीनो बेटे बड़े सुपुत्र है। इसलिये यह अपनी माँ की सेवा में लगे रहते है।3 तीनो बेटों को उनसे ज्यादा प्यार या लगाव की असली वजह कुछ ओर है।


वजह है उनकी माँ का एक बड़ा संन्दुक। एक बड़ा लड़की का संन्दुक जिस पर ताला लगा है। यह संन्दुक इनके जीवन में बहुत अहम भूमिका रखता है।

इस संन्दुक के अंदर क्या है ओर कितना है ना तो इन तीनो बेटों को पता है ना ही इनकी पत्नियों को, बस जब से पिता जी गये है माता जी को इस संन्दुक की रक्षा करते देखा है।


इसलिये इन सभी ने अपने अपने अनुमान लगा रखें है। ना ही अनुमान बल्कि इन्होने तो एक आस लगा रखी है की इस संन्दुक के खुलते ही यह क्या क्या करने वाले है।


सावित्री जी उस संन्दुक को छोड़कर कभी नहीं जाती, कभी जाती भी तो अपने कमरे में बड़ा ताला लगा कर ही बाहर निकलती वो सिर्फ थोड़ी देर में ही वापस आ जाती।


तीन बेटों और उनकी पत्नी की उस संन्दुक पर नजर ना जानें कब से है। सबने अपनी तरफ से अपनी अपनी कोशिश भी कर के देख ली माँ को अपने साथ अपने घर लें जानें की।

ताकि माँ के साथ उनका संन्दुक भी वहाँ से हिल सके और फिर जाहिर सी बात है जिसके घर में माँ रहेगी उसका संन्दुक। लेकिन सभी एक दुसरे की काट करते है।


इसकी कृपा है की माँ के आगे पीछे माँ जी माँ जी करते ना सिर्फ बेटे बल्कि बहुएँ भी चक्कर लगाती रहती है।
लेकिन सावित्री जी भी भली भाती अपने बेटों को समझती है। वो जानती है की उनकी इतनी सेवा क्यों हो रही है।


उनकी सेवा उनके संन्दुक के कारण हो रही है। उन्हें पता है जिस दिन यह संन्दुक इनके हाथ आया उस दिन उनका मूल्य कुछ भी ना रह जायेगा।


तीनो भाइयों और उनकी पत्नियों में यह बाते है। है की माँ के पास ना सिर्फ उनका सोना है बल्कि उनकी सांस का सोना भी इसी संन्दुक में है। माँ इसलिये इस संन्दुक की इतनी हिफाज़त करती है। 


सभी अपनी अपनी कहानियाँ बना कर बैठे है किसी का दावा है की उन्होंने संन्दुक को एक बार उठा कर देखा है वो बहुत भारी है।


माँ के कमरे में इन बहुओं ने कई बार सफाई के बहाने संन्दुक के पास जानें की कोशिश की लेकिन माँ जी ने उन्हें बार बार टोका और कहाँ की इस संन्दुक से अभी दूर रहो।

समय आने पर इस संन्दुक में क्या है तुम्हे अपने आप ही पता चल जायेगा। आखिर माँ की बात कौन टालता। और वो भी अभी तो कोई भी नहीं।


बस उस समय के इंतज़ार में यह सब माँ का अच्छा बेटा और अच्छी बहूँ बनने की कोशिश कर रहें है।

रात में कोई ना कोई माँ के घर में, जरूर रुकता लेकिन माँ जी उसे अपने कमरे में सोने नहीं देती थी। इस तरह सावित्री जी ने इस संन्दुक के सहारे 20 साल निकाल दिये।


एक दिन माँ जी तबियत थी नहीं थी। अक्सर जब तबीयत बिगड़ जाया करती थी तब उनके बेटे उन्हें अस्पताल लें जानें का कहते थे।

लेकिन वो उसके लिये भी राजी नहीं होती थी वो कहती थी की डॉक्टर को यही बुलवा लों। उनके बेटे ऐसा ही करते थे।


इस बार जब उनकी तबियत ख़राब हुई तो डॉक्टर ने कहाँ की उन्हें अस्पताल में एडमिट करना ही होगा वरना उनकी हालत ख़राब हो सकती है।

और फिर उम्र भी बढ़ती जा रही है आखिर कब तक यह शरीर साथ देगा।डॉक्टर के यह जवाब देने पर तीनो भाइयों को दुःख से ज्यादा उत्साह दिखाई दिया।

उनकी पत्नियों की आँखो की चमक साफ दिखाई दें रही थी। सावित्री ने उन्हें कमरे के बाहर ख़ुश फुस करते सुना।


तीनो इस बात पर चर्चा कर रहें थे की माँ के जानें के बाद संन्दुक में जो भी है वो आपस में बांटा जायेगा सबको बराबर बराबर मिलेगा।


सावित्री जी ने जब यह सुना तो उनको अंदाजा लग गया की अब समय हो गया है इन सब को यह बताने का की आखिर इस संन्दुक में क्या है।


उन्होंने आवाज़ लगाकर अपने तीनो बेटों और बहूँ को अंदर बुलाया।सबने आते ही कहाँ माँ अस्पताल चलते है। आप वहाँ जाकर ही ठीक होगी।


माँ ने कहाँ की पहले वो जान लो जिसके लिये तुम सब इतने सालो से चक्कर लगा रहें हो। उसके बाद तुम्हारी मर्जी।


इस संन्दुक में तुम तीनो के लिये मेरे पास कुछ है। जो में तुम्हे आज देना चाहती हूँ।माँ ने अपने तकिये के निचे से एक चाबी निकाली और धीरे से खड़ी होकर संन्दुक को खोलने के लिये निचे झुकी।


वहाँ खड़े सभी बेटे और बहुओं की धड़कन तेज थी। आज उनके बरसों का इंतज़ार ख़त्म हो रहा था।माँ ने संन्दुक खोला  संन्दुक में 3 अलग अलग कपड़ो में लपेट कर कुछ रखा हुआ था।

सबकी आंखे बड़ी आश्चर्य के साथ उस संन्दुक की ओर ही थी। माँ ने कपडे में. लपेटा हुआ समान आकर उठाने को कहाँ।


तीनो बेटों ने एक एक समान उठा लिया और उसे खोल कर देखा।कपड़ा खुलते ही कमरे में मौजूद हर एक इंसान का मुँह फटा का फटा रह गया।


उन कपड़ो में से नीकला एक भारी पत्थर। तीनो के हाथो में था एक एक पत्थर। यह क्या माँ इतने दिनों से तुम इन पत्थरों को संभाल कर रखी हुई थी। और हमें बेवकूफ़ बना रही थी।

हमने सोचा तुमने गहने संभाल कर रखें है।

माँ ने कहाँ मैंने तुम्हे कब बेवकूफ़ बनाया। और गहने तो थे बहुत थे लेकिन कब किसके लिये कितने बेचे इसका मैंने हिसाब नहीं रखा।


जब तुम्हारे पिता आखिरी समय में थे तब हमारे पास कुछ नहीं था तुम तीनो ने शादी के बाद ऐसा मुँह फेरा। क्या तुम्हे पता है की किस अभाव में उनका अंतिम समय गुजरा।


पर उस समय भी उन्होंने तुम्हे कुछ नहीं कहाँ उन्होंने उस समय भी मेरा सोचा। उन्हें पता था की उनके जानें के बाद उनके बेटे मेरे साथ भी यही करने वाले है।

इसलिये उन्होंने मेरे लिये इस संन्दुक का उपाय खोजा। देखो कितना सही उपाय दिया था। तुम लोगों को बेवकूफ़ बनाना या तुम लोगों से सेवा करना ना उनका मकसद था ना मेरा।

वो तो चाहते थे की उनके जानें के बाद में अकेली ना रहूँ। बेटे मेरे साथ हो मेरी आँखों के सामने बस यही इच्छा थी।
अब में शायद ज्यादा ना रहूँ इसलिये मैंने तुम्हे सच बता दिया।


सभी बेटे बहूँ अब कमरे से बड़बड़ाते हुऐ और गुस्से से निकले। करीब 1 घंटे तक माँ के कमरे के बाहर ही सब एक दुसरे पर अपना गुस्सा निकाल रहें थे।


बहस हो रही थी की अब माँ को अस्पताल लें जाना है की नहीं और लें जायेगा तो खर्चा कौन उठाएगा। माँजी अपने बिस्तर पर लेती हुई सब सुन रही है।


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