थोड़ा ही सही, कुछ तो करू – प्रेरणादायक हिंदी कहानी।Motivational Hindi story।छोटी कहानी इन हिंदी। Chhoti kahaniya।Hindi kahani।Hindi Story।



थोड़ा ही सही, कुछ तो करू – प्रेरणादायक हिंदी कहानी।Motivational Hindi story।छोटी कहानी इन हिंदी। Chhoti kahaniya।Hindi kahani।Hindi Story।


 कहानी का परिचय (Introduction)

कभी-कभी ज़िंदगी में या समाज में ऐसी समस्याएँ आती हैं जिनका हल सब जानते हैं, लेकिन कोई कदम नहीं उठाता।हम शिकायत करते रहते हैं, पर शुरुआत कोई नहीं करता।

यह कहानी एक ऐसे 80 साल के बुज़ुर्ग की है जिन्होंने दिखा दिया कि बदलाव की शुरुआत उम्र से नहीं, इरादे से होती है।




हिंदी कहानी (hindi story ): थोड़ा ही सही, कुछ तो करू।


गाँव में जाने वाली मुख्य सड़क पर कई दिनों से एक बड़ा ट्रक उलटा पड़ा था। वो ट्रक पत्थर लेकर जा रहा था, लेकिन एक मोड़ पर पलट गया। कुछ ही दिनों में ट्रक का मालिक आया और गाड़ी के हिस्से उठा ले गया, लेकिन जो भारी-भारी पत्थर सड़क पर गिरे थे,वो उसी जगह पड़े रहे।


धीरे-धीरे उन पत्थरों ने पूरी सड़क बंद कर दी।अब कोई वाहन गाँव में नहीं आ सकता था।बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती,

बीमार लोगों को अस्पताल पहुँचाने में तकलीफ़ होती,
और गाँव की औरतें भी बाज़ार तक नहीं जा पा रहीं थीं।


हर दिन चौपाल पर बैठकर लोग चर्चा करते —
“सरकार को सूचित करो…”
“कोई ट्रैक्टर भेजेगा तो हटेंगे…”
“हम क्यों करें? ये काम तो पंचायत का है…”


सबको परेशानी थी, पर कोई आगे नहीं बढ़ा।




 रामू काका का संकल्प


गाँव के कोने में रहने वाले रामू काका — उम्र अस्सी साल, कमर झुकी हुई, हाथ में पुरानी लकड़ी की लाठी।वो रोज़ लोगों को शिकायत करते देखते रहते, पर एक दिन उन्होंने तय किया — अब बस।


सुबह-सुबह जब बाकी गाँव सो रहा था, रामू काका एक छोटी-सी हथौड़ी और फावड़ा लेकर वो पत्थरों के पास पहुँचे, झुके और एक-एक कर उन्हें तोड़ने लगे।
कभी बैठते, कभी सांस लेते, फिर धीरे-धीरे एक छोटा टुकड़ा हटाते।

उनकी उम्र के हिसाब से यह काम नामुमकिन था,
पर इरादे मजबूत थे।
सूरज सिर पर चढ़ जाता, तब भी वो वहीं जुटे रहते।


 चार दिन बाद...

लगातार तीन-चार दिन तक रामू काका वही करते रहे।
लोग गुजरते हुए देखते, कुछ हँसते, कुछ ताने मारते —
“काका, ये आपका काम नहीं है, छोड़ दीजिए।”

रामू काका बस मुस्कुराते हुए कहते —

> “बेटा, तुम सब बहुत व्यस्त होगे,
मेरे पास तो समय ही समय है…
थोड़ा ही सही, कुछ तो करू।”



उनके इस जवाब ने जैसे गाँववालों के दिलों पर चोट की।
हर दिन शिकायत करने वाले अब सोचने लगे —अगर एक 80 साल का आदमी कर सकता है, तो हम क्यों नहीं?


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🛠️ बदलाव की शुरुआत

पाँचवें दिन सुबह जब रामू काका वहाँ पहुँचे,
तो देखा — कई नौजवान वहाँ खड़े थे,
अपने हाथों में फावड़े और कुदाल लिए।
उन्होंने कहा —

> “काका, आज हम सब भी आपके साथ हैं।”



धीरे-धीरे पूरा गाँव इकट्ठा हो गया।
किसी ने ट्रैक्टर मंगवाया, किसी ने पत्थर ढोए,
और कुछ ही घंटों में वह रास्ता फिर से खुल गया।

जब सड़क साफ हुई, तो बच्चों ने खुशी से तालियाँ बजाईं,
और बुज़ुर्गों की आँखों में चमक आ गई।

> “अगर काका ने पहला कदम नहीं उठाया होता,
तो हम शायद आज भी शिकायत कर रहे होते।”


 कहानी का संदेश (Moral of the Story)


“बदलाव की शुरुआत करने के लिए ताकत नहीं, हिम्मत चाहिए।” जो इंसान शिकायत छोड़कर कदम बढ़ाता है,
वही दूसरों को प्रेरित करता है।



थोड़ा ही सही, कुछ तो करो — क्योंकि हर बड़ा बदलाव एक छोटे कदम से शुरू होता है।


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