"बेटा, तेरा विवाह एक अत्यंत ही सुंदर स्त्री से होगा ।"
गाँव में आये एक प्रसिद्ध महात्मा नें यह बात एक युवक को देखकर कहीं. उनकी बात उस युवक के मन में ऐसे बसी, जैसे पत्थर पर लिखी हो। युवक नें विवाह के समय बिना तस्वीर देखें विवाह कर लिया परन्तु जब युवक नें अपनी पत्नी को देखा तब...। हिन्दी कहानियाँ। हिन्दी कहानी। Hindi kahaniyaa।Hindi kahani
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सुन्दर स्त्री से विवाह। Hindi story।Hindi kahani।Hindi kahaniyaa।Hindi stories।Hindi Emotional stories।Moral stories in hindi
मैं तब लगभग 27 साल का था, जब एक पहुँचे हुए महात्मा जी हमारे गाँव आए। महात्मा जी ख्याति थी इसलिये पूरा गाँव वहाँ उपस्थित था अपने अपने कष्टों के निवारण के लिये।
उनके चेहरे पर एक अद्भुत शांति थी और उनकी आँखों में ऐसा अपनापन, मानो बरसों से जानता हूँ। जब सब लोग उनसे आशीर्वाद ले रहे थे, मैं भी उनके पास पहुँचा।
मुस्कुराते हुए उन्होंने मेरी ओर देखा में बस उनका आशीर्वाद लेने के उद्देश्य से उनके समीप गया था लेकिन ऐसा कुछ हुआ जो मैने सोचा भी नहीं था उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और बोले—
"बेटा, तुम भाग्यशाली हो तुम्हारा विवाह एक अत्यंत सुंदर स्त्री से होना तय है ।"
उनकी आवाज में इतना विश्वास था कि मैंने बिना सोचे मान लिया।
कुछ महीनों बाद माँ ने शादी की बात चलाई। उन्होंने लड़की के परिवार के बारे में बताया और रिश्ता पक्का कर दिया। उन्होंने तस्वीर दिखाने की कोशिश भी की, मगर मुझे महात्मा जी की बात याद आ गई—"बहुत सुंदर स्त्री से विवाह होगा"—तो मैंने बिना देखे ही "हाँ" कह दी।
शादी बड़े धूमधाम से हुई। रिश्तेदार, बरात, ढोल-नगाड़े—सबकुछ वैसा ही जैसा हर नौजवान सोचता है। इन सब के बीच मेरे मन में अपनी पत्नी की सुंदरता देखने की चाह प्रगाड़ हो रही थी।
अंततः वो समय आ ही गया जब मेरा इंतजार ख़त्म होना था। वो रात आ गई जब मुझे घूँघट उउठाना था। लेकिन मुझे पता था की मेरे साथ यह होना था, जिसकी मैंने कल्पना नहीं की वो हुआ।
सुहागरात की रात, जब मैंने पहली बार दुल्हन का चेहरा देखा, तो मेरा दिल जैसे बैठ गया।
वो साधारण थी—चेहरा सीधा-सादा, आँखों में कोई चमक नहीं, और वैसा आकर्षण भी नहीं जैसा मैंने सोचा था। मन में एक अजीब-सी निराशा उतर आई। मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की, और अगले ही दिन से अपने काम में डूब गया।
दिन महीनों में बदले, और महीने पूरे साल में। हमारे बीच औपचारिक बातें तो होती थीं, मगर न मैं दिल से जुड़ पाया, न वो मेरे करीब आ पाई। माँ कई बार समझाने की कोशिश करतीं, मगर मैं बस चुप रहता।
एक दिन गाँव में खबर आई कि वही महात्मा जी फिर से आए हैं। मैं दौड़ता हुआ उनके पास गया। मन में नाराज़गी भरी थी. जैसे ही मुझे उनके समक्ष जानें का अवसर फिर मिला मैने उनसे नाराजगी भरे शब्दों में कहा।
"महात्मा जी, आपने कहा था कि मेरी शादी एक बहुत सुंदर स्त्री से होगी। पर देखिए, वो तो बिल्कुल साधारण है।"
महात्मा जी बस मुस्कुराए। मेरी आँखों में थोड़ी देर देखा ओर कहा.
"बेटा, तुम्हारी स्त्री सुंदर है… तुम्हें दिखाई नहीं देती।" जाओ घर जाओ, सुंदरता क्या होती है यह तुम्हे पता ही नहीं। अपने घर जाओ ओर देखो।
उनकी यह बात सुनकर मैं और भी उलझ गया। पर जब घर लौटा, तो पहली बार मैंने सच में उसे देखने की कोशिश की—सिर्फ चेहरे को नहीं, उसके व्यवहार को, उसकी बातों को, उसके कामों को।
मैंने देखा...
वो सुबह सबसे पहले उठती है, मेरे और माँ के लिए चाय बनाती है। माँ बीमार पड़ जाए तो रातभर उनके पास बैठी रहती है। मेरी पसंद का खाना बिना पूछे ही बना देती है। घर के हर छोटे-बड़े काम में वो चुपचाप लगी रहती है—बिना किसी शिकायत, बिना किसी अहंकार के।
मैंने महसूस किया कि उसकी हँसी में सच्चाई है, उसकी आँखों में अपनापन है, और उसके मन में एक गहरी करुणा है।
धीरे-धीरे मेरी नाराज़गी पिघलने लगी। अब जब वो मेरे सामने बैठती, तो मुझे उसका चेहरा अलग ही दिखने लगा. जैसे भीतर से कोई रोशनी झलक रही हो।
तब मुझे समझ आया—महात्मा जी का मतलब "रूप की सुंदरता" नहीं, बल्कि "मन और आचरण की सुंदरता" से था।
आज, कई साल बाद, मैं यह बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ।
चेहरा समय के साथ बदल सकता है, पर हृदय की सुंदरता उम्र के साथ और भी निखरती है.