"कैद में सिया" एक रहस्यमयी हिंदी कहानी है जहाँ एक औरत अंधेरे कमरे में जागती है, बंधी हुई… सामने है उसका ‘अपना’ या कोई अजनबी? सच जानने तक हर पन्ना सस्पेंस से भरा है।
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कमरे में गहरा अंधेरा पसरा था। खिड़की की झिरी से आती हल्की सी रोशनी दीवार पर रेंग रही थी। चारों तरफ़ सन्नाटा इतना गहरा था कि केवल घड़ी की टिक-टिक और दूर कहीं से आती हवा की सीटी सुनाई दे रही थी।
धीरे-धीरे बिस्तर पर पड़ी एक औरत की पलकों ने हरकत की। उसने आँखें खोलीं तो उसकी साँस अटक गई। 30 वर्षीय सिया ने पाया कि वह किसी अनजान बिस्तर पर लेटी हुई है। कमरे की दीवारें स्याह रंग की थीं, छत पर जाले और कोनों में धुंधले साये थे।
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उसने महसूस किया कि उसका पैर कसकर रस्सी से बाँधा गया है।
“ये… ये क्या है?” उसकी आवाज़ काँपी।
घबराहट में उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने इधर-उधर देखा और पाया कि उसके बगल में एक युवक सो रहा है। अंधेरे की वजह से उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था।
सिया का दिल जोर से धड़कने लगा। डर ने उसके गले को जकड़ लिया।
“कौन हो तुम? मुझे क्यों बाँधा है? बचाओ!! कोई है!!”
उसकी चीख सुनकर पास सोया युवक हिला। वह उठकर बैठा लेकिन बिना कुछ बोले, धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर चला गया। उसका चेहरा अब भी अंधेरे में छिपा रहा। दरवाज़ा कर्र-कर्र की आवाज़ करता हुआ बंद हुआ और फिर कमरे में फिर से वही डरावना सन्नाटा छा गया।
सिया पागलों की तरह बंधन छुड़ाने लगी। रस्सी उसकी त्वचा में धँस गई लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसकी कोशिश में मेज़ पर रखा पानी का जग गिरकर फर्श पर बिखर गया और एक फोटो फ्रेम टूटकर ज़मीन पर बिखर गया। काँच के टुकड़े चाँदनी की हल्की किरणों में चमक उठे।
अचानक दरवाज़ा फिर खुला। वही युवक हाथ में नाश्ते की प्लेट लिये लौटा। उसकी परछाईं दरवाज़े से आती रोशनी में और भी रहस्यमयी लग रही थी।
“पास मत आना!”—सिया ने काँपते हाथों से टूटे काँच का टुकड़ा उठाकर कहा—“आगे बढ़े तो मार दूँगी।”
युवक ठहर गया। उसने कुछ नहीं कहा। बस उसी शांति से, जैसे उसके भीतर कोई गहरा राज़ छिपा हो, मुड़कर बाहर चला गया।
सिया की साँसें और तेज़ हो गईं। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। “भगवान… ये कौन लोग हैं… मुझे क्यों फँसाया है…”
कुछ देर बाद दरवाज़ा दोबारा खुला। इस बार एक उम्रदराज़ औरत अंदर आई। लगभग पचपन-साठ की उम्र होगी। चेहरे पर झुर्रियाँ थीं लेकिन आँखों में ममता थी। उसके हाथ में वही नाश्ते की प्लेट थी।
“बेटी, शांत हो जाओ…” वह धीमी, सधी हुई आवाज़ में बोली।
“नहीं! मुझे छोड़ दो। कौन हो तुम लोग? मुझे क्यों बाँध रखा है?”—सिया ने चीखते हुए कहा।
वह औरत धीरे-धीरे पास आई और बोली—
“नीचे देखो… जो फोटो फ्रेम गिरा है, उसे उठाकर देखो।”
सिया ने काँपते हाथों से फोटो फ्रेम उठाया। टूटी हुई काँच की किरचों के बीच उसने तस्वीर देखी—शादी की तस्वीर। उसमें वह खुद दुल्हन के रूप में सजी थी और उसके साथ वही युवक था, जिसे वह अब तक अजनबी समझ रही थी।
सिया की साँस थम गई। आँखें फैल गईं। हाथ काँपते हुए नीचे गिर गए।
तभी दरवाज़ा फिर खुला। वही युवक अंदर आया। इस बार वह सीधे उसके पास आया और झुककर उसके पैर की रस्सियाँ खोल दीं। फिर माँ की तरफ़ देखकर बोला—
“जाइए माँ… अब मैं संभाल लूँगा।”
सिया ने डरी-सहमी नज़रों से उसकी ओर देखा। उसका चेहरा अब रोशनी में साफ़ दिखाई दे रहा था। और तभी यादों की धुंध धीरे-धीरे छँटने लगी।
हाँ… यह उसका पति था। उसका नाम आदित्य। और वह उससे बेइंतहा प्यार करता था।
सिया के होंठ काँपने लगे—
“तुम… मेरे पति हो…?”
आदित्य ने उसकी आँखों में देखते हुए हल्की सी मुस्कान दी।
“हाँ… और हर सुबह तुम्हें यही बात फिर से याद दिलाना मेरी ज़िम्मेदारी है।”
सिया की आँखों से आँसू बह निकले। उसकी यादों के टुकड़े धीरे-धीरे जुड़ने लगे। उसे अपनी बीमारी याद आई—वह भूलने की बीमारी से जूझ रही थी। हर सुबह वह सब भूल जाती थी—अपना अतीत, अपना घर… यहाँ तक कि अपने पति को भी।
और आदित्य… हर सुबह नए सिरे से उसे समझाता, उसे बचाता, उसे थामे रहता। कभी-कभी वह घबराकर भागने की कोशिश करती, खुद को चोट पहुँचा लेती। इसलिए मजबूरी में आदित्य उसे बाँध देता था—ताकि वह सुरक्षित रहे।
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने काँपते हाथों से आदित्य का हाथ पकड़ा।
“मुझे माफ़ करना…”
आदित्य ने धीरे से उसके आँसू पोंछ दिए।
“माफ़ी क्यों? तुम भूल जाती हो, पर मैं नहीं भूलता। हमारा रिश्ता… हमारा प्यार… ये कभी नहीं भूल सकता।”
कमरे का अंधेरा अब उतना डरावना नहीं लग रहा था। उस अंधेरे में भी आदित्य का प्यार एक रोशनी की तरह चमक रहा था।
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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है। इसके पात्र घटनाये स्थान नाम भी काल्पनिक है। इसका किसी के भी जीवन से मेल खाना महज एक सयोंग होगा। कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना है। कृपया इसे उसी तरह से लिया जाये। पाठक अपने विवेक का इस्तेमाल करें।