अनिकेत और उसकी दादी की दिल छू लेने वाली कहानी। बछड़े और उसकी माँ की मासूमियत देखते हुए अनिकेत दादी से पूछता है, “बछड़े की दादी कहाँ है?” दादी जवाब नहीं देती, सिर्फ भावुक होकर उसे गले लगाती हैं। वृद्धा आश्रम में अनिकेत के माता-पिता ने अपनी माँ को छोड़ दिया था। यह इमोशनल कहानी हमें परिवार, प्यार और वृद्धाश्रम में बिताए गए पलों की अहमियत याद दिलाती है।
अनिकेत की दादी। क्या दादी हमारे साथ नहीं जायेगी? Emotional story in Hindi। हिन्दी इमोशनल कहानियाँ। हिन्दी कहानी। Hindi Stories।
सुबह का उजाला और अनिकेत की मासूमियत-
सुबह का हल्का उजाला कमरे में फैल रहा था। अनिकेत अपनी दादी के साथ खिड़की के पास खड़ा था। आज उसने अच्छे जूते और साफ-सुथरे कपड़े पहने थे।
बाहर की दुनिया उसके लिए हर दिन नई और रोमांचक लगती थी। वह हर आती-जाती चीज़ को बड़े ध्यान से देखता और दादी से सवाल करता।
बछड़े की खोज और अनिकेत का सवाल-
उसने देखा कि एक छोटी गाय का बछड़ा अपनी माँ को ढूँढ रहा था और जोर-जोर से “माँ… माँ…” चिल्ला रहा था।
अनिकेत ने दादी से पूछा,
“दादी, इसकी मम्मी कहाँ गई?”
दादी ने धीरे से कहा,
“बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम रोते हो, वैसे ही यह भी अपनी माँ को बुला रहा है।”
कुछ ही पल में, बछड़े की माँ आ गई। बछड़ा खुशी से उसके पास भागा। अनिकेत की आँखों में भी खुशी की चमक आ गई।
अनिकेत का नया सवाल:-
जैसे ही अनिकेत की खुशी थोड़ी ठंडी हुई, उसने अपनी दादी से सवाल किया,
“दादी… इस बछड़े की दादी कहाँ है? क्या यह बच्चा दादी नहीं बोलता?”
दादी को जवाब नहीं सूझा। उनकी आँखें नम हो गईं। उन्होंने सिर्फ अनिकेत को भावुक होकर गले लगाकर चुप रहना चुना।
अनिकेत ने महसूस किया कि कुछ सवालों का जवाब सिर्फ भावनाओं में ही मिलता है। वह दादी के गले में अपना सिर टिकाए रह गया, और दोनों के बीच एक अनकहा प्यार बहने लगा।
विदाई का पल और दिल छू लेने वाला दृश्य-
तभी अनिकेत की माँ आई और बोली,
“चलो, अब बहुत देर हो गई। हमें जाना होगा।”
अनिकेत ने पूछा,
“दादी नहीं चलेगी?”
माँ कुछ नहीं बोली। अनिकेत ने “दादी! दादी!” कहकर रोना शुरू कर दिया।
कार धीरे-धीरे सड़क पर बढ़ी। दादी खिड़की से अनिकेत को देखते हुए रह गईं। बछड़ा चुप हो गया, पर अनिकेत की आवाज़ गूंजती रही।
अनिकेत की आवाज़ धीरे-धीरे कम होती गई-
जैसे-जैसे कार शहर की भीड़ में घुल गई, अनिकेत की आवाज़ धीरे-धीरे दादी के कानों में कम होने लगी।
इस वृद्धा आश्रम की दीवारों के लिए यह आवाज़ या किसी की चिल्लाहट कोई नई बात नहीं थी।
यहाँ की हवा को लोगों की आदत हो गई थी, यहाँ रोज़ छोटे बच्चों की मासूमियत और बुज़ुर्गों की नर्मी, सब कुछ आम बात लगने लगी थी।
सच्चाई और भावनाएँ-
यह वृद्धा आश्रम था, जहाँ अनिकेत के माता-पिता ने अपनी माँ, यानी अनिकेत की दादी को यहाँ छोड़ दिया था।
दादी खिड़की से बाहर देखती रही, और अनिकेत की छोटी सी मासूमियत और प्यार उसकी आँखों में बस याद बनकर रह गया।
दादी को उम्मीद ही ना थी की अब कभी मिलना या उसकी आवाज सुनना होगा या नहीं।
