गोवर्धन डाकू को जब दिये भगवान नें दर्शन। आध्यात्मिक कहानी। हिन्दी कहानी। Spritual stories ।।

✨ एक प्रमाणिक कथा ✨

गोवर्धन डाकू को जब दिये भगवान नें दर्शन। आध्यात्मिक कहानी। हिन्दी कहानी। Spritual stories ।। सतसंग। 


गोवर्धन डाकू और भगवान का मिलन

एक चोर था जिसका नाम था गोवर्धन डाकू।

वह राजाओं के यहाँ चोरी किया करता था।


एक बार इसी प्रयास में राजा के सैनिक उसके पीछे पड़ गए।

घोड़ा भी छूट गया और वह पैदल भागा।


उसने देखा कि एक जगह सत्संग हो रहा है, कथा हो रही थी।

पंडित परशुराम जी महाराज कथा कर रहे थे।


राजकर्मचारियों ने सोचा – सभा में चोर कैसे घुस सकता है!

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कथा का प्रसंग

कथा में चोर बैठा था।

तभी एक प्रसंग चल रहा था –


> वृंदावन में यशोदा मैया ने कृष्ण को आज सोने की करधनी पहनाई।

बाँके बिहारी लाल को मैया ने सोने की लकुट दी, सोने का मुकुट दिया।

और सखाओं के साथ गाय चराने भेजा।


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चोर और पंडित जी


कथा समाप्त हुई तो चोर पंडित जी के पास पहुँचा।

उसने चाकू निकाला और कहा –


> "पता लिखो! यह जो इतने धनी बालक का आपने वर्णन किया, उसका पता लिखो।

हम डाकू हैं।"


पंडित जी ने लिखा –

मथुरा, वृंदावन

पिता का नाम – नंदबाबा

बालक – कन्हैया, जो गाय चराता है।


फिर बोले –

> "सुनो, तुम्हारे जैसे डाकू उसको चोरी नहीं कर सकते।

बहुत नट-नागर, प्रवीण बालक है।"

चोर बोला –


> "मैंने भी बहुत राजाओं को लूटा है।

मुझे ऐसा वैसा मत समझो।"


पंडित जी ने कहा –


> "नहीं लूट पाओगे।"


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डाकू का प्रण


पंडित जी का विश्वास देखकर चोर अड़ गया।


> "कसम खाता हूँ, जब तक उसे लूटूँगा नहीं, तब तक पानी नहीं पियूँगा।"


पंडित जी ने सोचा – पता नहीं भगवान की क्या लीला होने वाली है।


फिर बोले –


> "अगर तुम्हारा बस न चले, तो यह माखन-मिश्री ले जाओ।"

चोर ने सोचा – आखिर है तो बालक, माखन-मिश्री से काम चल जाएगा।

हथियार चलाने की क्या ज़रूरत है!

उसने माखन-मिश्री पेट पर बाँधी और नाम पूछा।


पंडित जी बोले –


"श्याम सुंदर।"


वह रटते हुए निकला –


"श्याम सुंदर... वृंदावन... वृंदावन..."


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वृंदावन की खोज


वह पैदल चलकर वृंदावन पहुँचा।


किसी से पूछा –

> "श्याम सुंदर की गाय कौन-सी है?"


उत्तर मिला –


> "यहाँ तो सबकी गायें श्याम सुंदर की हैं।"


चोर बोला –


> "नहीं, वो जिसे यशोदा मैया ने सोने का मुकुट पहनाकर भेजा है।"


लोगों ने कहा –


> "वो तो कथा का वर्णन है, प्रगट में नहीं।


चोर बोला –

> "पंडित जी झूठ थोड़ी कहेंगे! झूठ तो हम जैसे चोर-डाकू बोलते हैं,

पंडित जी नहीं।"


थककर उसने प्रार्थना की –


> "अगर कोई ईश्वर है तो मुझे श्याम सुंदर से मिला दो।

मैंने कसम खाई है, जब तक वो नहीं मिलेगा, मैं पानी नहीं पियूँगा।"

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श्याम सुंदर का दर्शन


तभी उसे आवाज़ आई –

> "ए गोवर्धन! श्याम सुंदर की गइया उधर जा रही है।"


वह दौड़ा और देखा –

कमर पर हाथ रखे एक बालक खड़ा है।

कमलनयन, अद्भुत छवि, वही आभूषण धारण किए जैसा पंडित जी ने वर्णन किया था।


डाकू ने चाकू निकाला और सखाओं को मारने को कहा।

भगवान की माया से वे सब चले गए।


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डाकू और भगवान का संवाद

भगवान ने कहा –


> "हाँ बोल रे।"


डाकू बोला –


> "तू डरता नहीं है? मेरे हाथ में चाकू है।

मेरा नाम गोवर्धन डाकू है। मैंने कई राजाओं को लूटा है।"


भगवान मुस्कुराए –

> "तू गोवर्धन डाकू है तो मैं गोवर्धन धारी हूँ।"

जैसे-जैसे भगवान उससे बातें करते गए, उसका अज्ञान कम होता गया।


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परिवर्तन


डाकू बोला –


> "अच्छा, तुम यह माखन-मिश्री खा लो।"


भगवान ने कहा –


> "अच्छा, इतना प्रेम करते हो!"


डाकू नें कहा 

प्रेम नहीं यह सोनें के आभूषण मुझे चाहिये।

भगवान नें मुस्कुराते हुऐ खाया औऱ उसके पश्चात

फिर भगवान ने अपने हाथों से भी डाकू को खिलाया।


माखन-मिश्री खाते ही उसका अज्ञान मिट गया।

वह प्रभु के चरणों में गिर पड़ा।


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निष्कर्ष


उसका प्रण था कि श्याम सुंदर से मिलकर रहूँगा।

और भगवान ने स्वयं उससे मिलकर उसकी कसम पूरी कर दी।


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✨ संदेश:

सच्चा विश्वास और प्रेम, चाहे चोर का ही क्यों न हो, भगवान तक पहुँचा देता है।


स्त्रोत-यह कहानी प्रेमानन्द जी महाराज के सतसंग से ली गई है 



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