टूटी हुई पेंटिंग औऱ माँ पर गुस्सा।। Emotional story in Hindi। Hindi kahani। Hindi story।Hindi Emotional Story। Hindi Kahaniyaa।।


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टूटी हुई पेंटिंग” एक भावनात्मक कहानी है जो रिश्तों की अहमियत और गुस्से के परिणाम को दर्शाती है। यह कहानी बताती है कि चीज़ें जुड़ सकती हैं, लेकिन एक बार कोई चला जाएं तो उन्हें वापस पाना नामुमकिन हो जाता है।



घर में मेहमान आए हों और हर चीज़ सजी-सँवरी हो, तो नज़र सबसे पहले दीवारों पर ही जाती है। राजीव का घर भी उस दिन कुछ ऐसा ही चमक रहा था। सुंदर परदे, साफ़-सुथरी सजावट, और दीवारों पर लगी कलाकृतियाँ सबको आकर्षित कर रही थीं। लेकिन अचानक सबकी नज़रें एक जगह थम गईं।


ड्रॉइंग रूम की बड़ी दीवार पर टंगी हुई एक पेंटिंग ने सबको चौंका दिया। पेंटिंग खूबसूरत तो थी, मगर वह टूटी हुई थी—बिलकुल बीच से दो टुकड़ों में बँटी हुई और जैसे-तैसे जोड़कर फिर से फ्रेम में टांगी गई थी।


मेहमानों में से किसी ने हिम्मत करके पूछ ही लिया—
“राजीव जी, इतनी कीमती और सुंदर पेंटिंग... टूटी हुई क्यों टंगी है? आप चाहें तो इसे बदल सकते हैं, या नई खरीद सकते हैं।”


राजीव कुछ पल खामोश रहे। उनका चेहरा गंभीर था। फिर उन्होंने गहरी साँस ली और कहा—
“ये पेंटिंग सिर्फ़ एक पेंटिंग नहीं है... ये मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती और सबसे बड़ा सबक है.


“कुछ साल पहले की बात है। मैंने यह पेंटिंग बहुत शौक से खरीदी थी। जब इसे देखा तो लगा जैसे ये मेरे घर की शोभा बढ़ा देगी। बड़ी मेहनत और पैसों से लाया था इसे। अगले ही दिन मैंने बड़े उत्साह के साथ इसे इस दीवार पर लगाया।



शाम के समय मैं अपने कमरे में था। तभी अचानक एक आवाज़ आई। भागकर बाहर आया तो देखा—मेरी प्यारी पेंटिंग ज़मीन पर गिरी पड़ी है और दो हिस्सों में टूट चुकी है। मेरी आँखों के सामने जैसे सब बिखर गया। गुस्से से मेरा चेहरा लाल हो गया। तभी नज़र पड़ी—माँ पास खड़ी थीं। शायद उन्हें चलते हुए संतुलन खो गया था और उन्होंने सहारे के लिए दीवार पर हाथ रखा था। अनजाने में उन्होंने पेंटिंग को पकड़ लिया और वह गिर पड़ी।”



राजीव की आवाज़ यहाँ रुक गई। कुछ पल चुप रहकर उसने आगे कहा—
“मुझे उस समय बस टूटी हुई पेंटिंग दिखी... माँ की थकान, उनका सहारा ढूँढना या उनकी मासूमियत नहीं दिखी। मैंने बिना सोचे-समझे माँ पर ज़ोर से चिल्ला दिया। शब्द इतने कठोर थे कि आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। माँ ने कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप अपने कमरे में चली गईं। और मैं... मैं रातभर गुस्से में बैठा रहा।



“सुबह जब नींद टूटी तो गुस्सा ठंडा हो चुका था। मेरे भीतर पछतावे की लहर उठी। सोचा माँ के पास जाऊँ और उनसे माफ़ी माँग लूँ। जैसे ही उनके कमरे में गया... तो माँ चली गई थी।


माँ कब गई मुझे पता भी नहीं चला। उन्हें कब तकलीफ हुई, क्या तकलीफ हुई। क्या उन्होंने मुझे एक बार आवाज लगाने की सोची थी या नहीं।


मेरे उस गुस्से की वजह से कही उन्होंने यह सोचा होगा की उसे औऱ परेशान ना करुँ।
बस अब में इन्ही सब विचारों में खोया रहता हूँ। सबसे बड़ा दर्द ये है कि मैं उनसे माफी तक नहीं माँग पाया।”


राजीव की आँखों में आँसू थे। उनके शब्द मानो दिल से निकलकर सीधे सुनने वालों के दिल में उतर रहे थे।




“तभी से यह टूटी हुई पेंटिंग मैंने यहीं टांग दी है। लोग कहते हैं इसे बदल दो, लेकिन मेरे लिए यह एक सबक है। ये दीवार पर लगी टूटी तस्वीर रोज़ मुझे याद दिलाती है कि गुस्से में बोले गए शब्द वापस नहीं आते।


अगर उस दिन मैंने थोड़ा धैर्य रखा होता, माँ को समझा होता, तो आज शायद वो मेरे साथ होतीं। लेकिन मैंने अपने गुस्से को जीतने दिया और अपनी माँ को खो दिया।


कमरे में सन्नाटा छा गया। मेहमानों की आँखें भीगी हुई थीं। सबको लगा जैसे उस टूटी पेंटिंग के पीछे केवल एक कला का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक बेटे का प्यार और उसका जीवनभर का पछतावा छिपा हुआ है।


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