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डेढ़ साल की दूरी और नाराज़गी के बाद एक फोन कॉल ने रिश्ते को फिर से जोड़ दिया। “5 दिन में फिर प्यार” एक मार्मिक love story है , जहाँ पीठ दर्द से जूझते पति और नाराज़ पत्नी पाँच दिनों की देखभाल और खामोशी में फिर से करीब आते हैं। यह कहानी बताती है कि सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता।



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यह पहली बार था, जब उनका फोन आया। लगभग एक साल बाद।
रिंगटोन बजती रही… मैं स्क्रीन को देखती रही। दिल और दिमाग में सवाल था—क्या उठाऊँ या नहीं?
मन में कसक थी, नाराज़गी थी, और कहीं न कहीं पुरानी चोट भी। लेकिन उंगलियाँ जैसे अपने आप आगे बढ़ीं और कॉल रिसीव हो गई।

फोन उठाते ही उनकी आवाज़ आई—
“वो… मेरी पीठ की दर्द की दवा कहाँ है? कुछ तुम्हारे पास रह गई है क्या?”

एक पल को जैसे सन्नाटा छा गया। एक साल बाद, पहली बार, यही बात?
मैंने मन ही मन सोचा था कि अब उनसे बात नहीं करूँगी। लेकिन पता नहीं क्यों, मैंने धीरे से जवाब दिया। दवा कहाँ रखी थी, बता दिया।

उसके बाद, फोन कट गया।
दो दिन तक कोई कॉल नहीं आया।
मन में हलचल थी—क्या उनकी तबियत ठीक हुई होगी? आखिरकार, मैंने खुद ही फोन किया।

“पीठ दर्द ठीक हुआ?” मैंने पूछा।
उधर से छोटा सा जवाब आया—
“नहीं।”

मैं चुप रह गई। अब और क्या कहती?


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कुछ दिन बाद मैं अचानक घर लौट आई।
दरवाज़ा खोला तो देखा—वो बिस्तर पर लेटे थे। चेहरे पर थकान, आँखों में बेचैनी।
जैसे ही नज़र पड़ी, दिल में जमा हुआ ग़ुस्सा जाने कहाँ चला गया। पहली बार ख्याल आया—काश उनका पीठ दर्द ठीक हो जाए।

घर का हाल देखा तो मन और भी भारी हो गया।
बर्तन गंदे पड़े थे, घर बिखरा हुआ था। मैंने पूछा—
“कामवाली नहीं आती क्या?”
उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने किचन देखा—सन्नाटा।
“खाना खाया?” मैंने फिर पूछा।
धीरे से बोले—
“नहीं।”

मैं चुपचाप खाना बनाने चली गई। थाली सजाकर उनके सामने रख दी। वो बिना कुछ कहे खाने लगे।


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शाम ढल रही थी।
खिड़की से आती हल्की धूप कमरे में फैल गई थी।
उन्होंने पहली बार मेरी ओर देखा और कहा—
“जाओगी नहीं?”

मैंने उनकी आँखों में देखा और धीमे से बोली—
“जाऊँगी… लेकिन पहले तुम ठीक हो जाओ।”

वो चुप रहे।
जैसे बहुत कुछ कहना चाहते थे, पर शब्दों की जगह खामोशी चुनी।


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पाँच दिन ऐसे ही बीत गए।
मैं वहीं रही। दवा दी, मालिश की, खाना बनाया, घर सँवारा। धीरे-धीरे उनका दर्द कम होने लगा।
पाँचवें दिन उन्होंने पहली बार बिना सहारे उठकर कहा—
“अब पीठ दर्द चला गया।”

मैं मुस्कुराई। पर तभी दिल में एक खटकी सी उठी—
पीठ का दर्द तो चला गया,
लेकिन जो दर्द दिल में था, जो हमें डेढ़ साल तक अलग किए रहा—वो नहीं गया।


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कभी-कभी रिश्ते भी बीमार हो जाते हैं।
उनका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं होता।
कभी एक थाली का खाना, कभी एक पल की खामोशी, कभी देखभाल का अहसास… यही असली मरहम होते हैं।






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