बिस्तर खाली था और आवाज़ें वॉशरूम से आ रही थीं. वो रात को किसी से बात कर रही थी… पर सच क्या था. Hindi Kahani. Suspense Story in Hindi. Love suspense Story. छोटी कहानी.
हिन्दी कहानी( Hindi story ) — शादी के 8 महीने बाद खुला एक ऐसा राज़- Hindi short story.
(Hindi Suspense Story | Marriage Mystery Story | Emotional Hindi Kahani | Nayi Kahani)
मेरी नींद अचानक खुली। कमरा अँधेरे में डूबा था, पंखे की धीमी-धीमी आवाज़ चल रही थी, पर मेरे बगल का बिस्तर खाली था। वो नहीं थी। पहले मुझे लगा शायद वॉशरूम में होगी। रात के दो बजे और ठंड इतनी कि रज़ाई से भी हाथ निकालने का मन न करे। मैंने करवट ली और खुद को समझाया— “शायद पानी पीने गई होगी।” और फिर, मेरी आँखों पर दोबारा नींद हावी हो गई।
करीब तीस मिनट बाद फिर अचानक जाग आया। इस बार भी बिस्तर खाली। दिल में हल्की-सी बेचैनी हुई। कमरे की खिड़की से हल्की पीली स्ट्रीट लाइट अंदर आ रही थी। मैंने उठकर वॉशरूम की तरफ कदम बढ़ाए। तभी… अंदर से एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे कोई बहुत सावधानी से, बहुत धीरे बोल रहा हो… जैसे किसी से बात छुपाने की कोशिश कर रहा हो। मेरी धड़कन थोड़ी तेज हो गई।
मैंने ध्यान से सुना— किसी की आवाज़ थी… पर यह तय नहीं कर पाया कि वो फोन पर बात कर रही है या किसी से सामने। मेरे पैर खुद-ब-खुद दरवाज़े तक चले गए। मैंने हाथ उठाया ही था दरवाज़ा खटखटाने के लिए कि आवाज़ एकदम से रुक गई। और अगले ही पल— दरवाज़ा झटके से खुला। वो सामने थी।
चेहरा जैसे किसी ने रंग चुरा लिया हो—फीका, घबराया हुआ। मेरी तरफ एक पल देखा, और तुरंत नज़रें झुका लीं। बिना कुछ कहे, सीधे बिस्तर पर जाकर लेट गई…। मैं हैरान खड़ा रह गया— ये क्या था? किससे बात कर रही थी? और मेरी आहट आते ही इतनी घबराहट क्यों? उस रात हम दोनों के बीच जो दूरी थी, वो अचानक और ज्यादा हो गई।
पर वो रात… वो फुसफुसाहट… वो घबराया हुआ चेहरा… मेरे मन में एक शक की तरह बैठ गई। मैंने खुद को बहुत रोका, पर आखिरकार एक दिन माँ से बात कर ही ली। माँ पहले तो शांत रहीं, फिर अचानक गुस्से से भर उठीं— “ये सब क्या चल रहा है? रात को फुसफुसाहट? किसी से बातें? अब बस… मैं खुद उसके घरवालों से बात करूंगी।”
उसी शाम माँ ने फोन किया और अगले दिन सभी लोगों के आने का समय तय हो गया।
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बैठक वाले दिन हमारे घर में जैसे हवा भी भारी महसूस हो रही थी। वो अपने माता-पिता के साथ बैठी थी. उसका चेहरा बिल्कुल खाली—जैसे किसी ने सारे भाव निकाल लिए हों। माँ ने बात शुरू की। “आपकी बेटी शादी के बाद से रात-रात भर किसी से बात करती है। अपने पति से दूरी बनाकर रखती है। आखिर मामला क्या है?” मेरी पत्नी की आँखें झुकी रहीं। उसके पिता ने मेरी माँ को ध्यान से सुना, फिर उसकी तरफ देखा— “चल बेटी… घर चल।”
कमरे में सन्नाटा फैल गया। जाते-जाते उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर धीमी आवाज़ में कहा— “एक बात कहकर जा रहा हूँ। आपने मेरी बेटी के बारे में बहुत कुछ बोल दिया… पर अपने बेटे को नहीं देखा।” मैं चौंक गया। माँ का चेहरा तमतमा गया। उन्होंने आगे कहा— “उस रात यह मुझसे बात कर रही थी। रो रही थी। कह रही थी कि शादी को आठ महीना हो गया, पर पति-पत्नी जैसा कुछ नहीं। और… आपका बेटा शायद किसी और से शादी करना चाहता था। इसने उसकी बातें सुनी हैं।”
कमरा जैसे हिल गया हो। माँ अवाक्। मैं स्तब्ध। वो मेरे सामने थी… पर पहली बार इतने महीनों में उसके चेहरे पर दर्द नजर आया। उसके पिता ने कहा— “चल मुक्ति…” और वो बिना कुछ बोले घर चली गई। मेरी माँ ने उसे रोकने की कोशिश की, पर उसके पिता का हाथ उसकी कलाई पर कस चुका था।
उसके जाने से घर में एक अजीब-सी खालीपन फैल गया। माँ मेरे कमरे में आईं और गुस्से में बोलीं— “ यह नई कहानी क्या है कि तुम किसी और से शादी करने वाले थे?” मैंने सच-सच सब बताया— “शादी से पहले मैं किसी से प्यार करता था… पर वो रिश्ता ख़त्म हो चुका था। उसने मुझे छोड़ किसी और के साथ शादी करने का फैसला ले लिया था, पर जब मेरी शादी पक्की हो गई तब अचानक उसका कॉल आया की उसकी शादी टूट गई वो मुझे दबाव डालने लगी लेकिन शादी हो गई टल नहीं पाई
मैं उससे बात करता था सबकुछ ख़त्म करने ही वाला था पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. सच है मैंने कभी मुक्ति को पत्नी की तरह सम्मान और प्यार नहीं दिया.
चुप्पियों का लंबा अंतराल महीने बीत गए। हम दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई। न फोन, न मैसेज। बस एक लंबी, भारी चुप्पी। रातें इतनी लंबी लगने लगीं कि नींद भी जैसे मुझसे नाराज़ हो गई हो।
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एक दिन मैंने फैसला लिया मैं उससे मिलने उसके घर गया। दरवाज़ा उसके पिता ने खोला। मुझे देखकर उनका चेहरा सख्त हो गया। “क्यों आए हो अब?” “एक मौका माँगने… उससे भी, और आपसे भी।” उन्होंने कुछ पल देखा, फिर अंदर जाने दिया। वो कमरे में अकेली बैठी थी। आँखों के नीचे काले घेरे गहरे हो चुके थे।
कभी खुश रहने वाली वो लड़की अब बस एक शांत परछाईं लग रही थी। मेरे कदमों की आहट सुनकर उसने सिर उठाया। न कोई गुस्सा, न कोई शिकायत… बस एक अजीब-सी थकान। मैंने धीमी आवाज़ में कहा— “मुक्ति… मुझे एक मौका और दो। मुझे माफ़ कर दो। शायद मैं तुमसे ठीक से बात नहीं कर पाया… शायद तुम्हें समझ नहीं पाया… शायद तुमने भी मुझे गलत समझा, पर हम दोनों गलत थे।” वो कुछ पल तक मुझे देखती रही… उसकी आँखें हल्के-हल्के भर आईं।
जो बीत गया अब विषय पर हम दोनों ने कभी बात नहीं की हम दोनों अपने नये सिरे अपने जीवन की शुरवात की प्यार भरी.
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