शादी, शक और एक सच्चाई। हिंदी कहानी ।Suspense Story in Hindi ।Hindi Story।छोटी कहानियाँ Romantic story। Hindi kahani । Chhoti kahani।



शादी पर आयी शालिनी जब मुझ से कहा की तुम्हारा पति जैसा दिखता है वैसा है नहीं.. Suspense story in hindi.।छोटी कहानियाँ। Hindi kahani।Hindi emotional story।Romantic love suspense Story।



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 शुरुआत – एक खुशियों भरी शादी

संगीत की आवाज़, लाइटों की चमक और हँसी की गूंज के बीच मेरी शादी का दिन आया।सब खुश थे, पर मेरे अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी।मेरी फ्रेंड के साथ उसकी एक फ्रेंड शालिनी भी शादी में आई थी —  
मे शालिनी को नहीं जानती थी, पर अब जानना चाहती थी।

शादी के फेरे पूरे होने से पहले ही वो अचानक चली गई। लेकिन उसके कुछ शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे —

 “तू जिसे अपना सबकुछ मान रही है, वो वैसा नहीं है जैसा दिखता है…”

मुझे नहीं पता था उसके कहने का क्या मतलब है, वो मेरे होने वाले पति को जानती भी है या नहीं. मेरे लिए उसका यह कहना कोई मायने नहीं रखता था लेकिन उसने मेरे अंदर शक का बिज बो दिया। मन किया की ज्योति जिसके साथ वो आयी थी, उससे शालिनी के बारे मे पूंछू लेकिन फिर मैंने उस बात को उस वक्त के लिए छोड़ दिया।


 शादी के बाद – मन का तूफ़ान

शादी के बाद सब कुछ सामान्य था। सूरज (मेरे पति) बेहद समझदार और शांत स्वभाव के इंसान थे।
वो हर बात में मेरा ख्याल रखते, मुस्कुराते और मुझे महसूस कराते कि मैं खास हूँ।

लेकिन, शालिनी की कही बातें मेरे दिमाग के किसी कोने मे अभी भी पड़ी थी।
मैंने खुद से कहा —

“उनके पास्ट से मुझे क्या मतलब? अब मैं उनकी ज़िंदगी में हूँ।”
फिर भी… एक खामोश सवाल हर वक्त मेरे अंदर घूमता रहा —
क्या सूरज ने मुझे सब सच बताया है?


 पहली  बार जब मैंने पूछा।

एक शाम मैंने हल्के-फुल्के लहज़े में सूरज से पूछा —
“आप शादी के पहले किसी के साथ थे क्या?”

वो कुछ पल के लिए ठिठक गए, फिर मुस्कुराते हुए बोले,

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था।”

बस यही जवाब मेरे भीतर आग की तरह फैल गया।अगर कुछ नहीं था तो रुक क्यों गए थे? 

क्यों मुस्कान अचानक फीकी पड़ी?

अब मुझे हर बात में शक नज़र आने लगा। वो देर से घर आएं, फोन चेक करें, किसी का नाम लें —
मुझे सब झूठ लगता। बात-बात पर झगड़े बढ़ने लगे।


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 वो दिन – जब सच्चाई सामने आई

रोज किसी ने किसी बात पर झगड़ा होता, वो कोशिश करते मुझे समझने की मुझे समझाने की, कहते की तुम हर वक्त मुझसे लड़ती क्यों हो आखिर बात क्या है?

एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि मैंने गुस्से में कह दिया —

“शालिनी सही कहती थी, तुम झूठे हो!”

सूरज चुप रहे कुछ पल। फिर धीरे से बोले —

तुम शालिनी को कैसे जानती हो?

मेरे जवाब उनके तरफ सिर्फ देखना था 
उन्हें मेरी आँखों मे अब वो दिखाई दिया जो, मेरे दिल मे इतने दिनों तक था।

“अच्छा, तो ये बात है… हां, मैं शालिनी को जानता था।”

मेरे दिल की धड़कनें थम गईं।

वो बोले —


जब विश्वास पागलपन बन गया। पढ़िए यह Hindi suspense story।




“हाँ, मैं उसे पसंद करता था… लेकिन उसने मेरी उस भावना का फायदा उठाने की कोशिश की।
असल में, प्यार जैसा कुछ उसकी तरफ से कभी था ही नहीं।
बस किसी तरह उसे मेरे मन की फीलिंग्स का अंदाज़ा हो गया था — और उसने उसी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करना चाहा।
वो मेरे ऑफिस में मेरी जूनियर बनकर आई थी, लेकिन उसके इरादे कुछ और थे।
उसका मकसद मुझे समझना नहीं, बल्कि मुझे हटाकर मेरी जगह लेना था।
उसे लगता था कि मेरी भावनाओं का इस्तेमाल करके वो आगे बढ़ सकती है।

जब मुझे उसकी मंशा का पता चला, तो मेरे अंदर कुछ टूट गया।
जिस इंसान को मैं सच्चे दिल से देखता था, उसी ने मेरे भरोसे को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की।
मैंने उससे कुछ नहीं कहा, बस अपने कदम पीछे खींच लिए।
हमारे बीच अब सिर्फ एक रिश्ता बचा था — प्रतिशोध का।
लेकिन मैंने उसकी तरह नहीं सोचा।
मैंने अपनी भावनाओं को ताकत बनाया, अपने काम पर ध्यान दिया।
वक्त के साथ मुझे प्रमोशन मिला, और उसका ट्रांसफर हो गया।

शायद उसे यह बात बुरी लगी थी।
जाने से पहले उसने बहुत कुछ कहा — ताने, इल्ज़ाम, और गुस्से भरे शब्द।
पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि मैं जानता था कि सच्चे जवाब शब्दों से नहीं, काम से दिए जाते हैं।
मैंने वही किया।
शायद आज भी उसने यह ठान लिया होगा कि मुझे खुश नहीं देखना है…पर मे यह सब की सोचता किसी के लिए सोचना समय की बर्बादी है अपने काम और जीवन को एन्जॉय करना यही मेरी सोच है।

इसमें ऐसा कुछ नहीं था जो तुम्हे बताया जाये, मेरी समझ नहीं आया की वो यहाँ कैसे आयी और उसने यह सब कब किया, पर सच तों यही ह



ज्योति को फोन -

उनकी बातो मे सच्चाई लग रही थी, 

अगले दिन मैंने ज्योति को फोन किया। और बातों बातो मे शालिनी के बारे मे पूछा 
ज्योति ने कहा की वो अचानक ही आ गई और मेरे साथ तेरे शादी चलने को कहा मुझे समझ नहीं आया लेकिन मैंने बोला ठीक है 
मैंने उसे कहा कोई बात नहीं आ गई तों।
मेरे दिल में अब कोई गुस्सा नहीं था, बस एक सुकून था —


मेरे मन का काँटा निकल गया-

उस रात मैंने सूरज के पास जाकर कहा,
“मुझे अब कुछ नहीं जानना… बस इतना समझ आ गया कि तुम सच्चे थे।”

वो मुस्कुराए,
“सच तो हमेशा वहीं होता है, बस हम उसे देखने में देर कर देते हैं।”

मैंने उनका हाथ थाम लिया।
कभी-कभी रिश्ते तकरार से नहीं, शक से टूटते हैं।
और भरोसा ही वो धागा है जो उन्हें फिर से जोड़ देता है।


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